पिछले दिनों जितना दोहन Jio के Free Data का नहीं किया गया उससे कहीं अधिक ‛अभिव्यक्ति की आज़ादी'(Freedom of Expression) का दुरुपयोग किया गया।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के मुताबिक़ प्रत्येक नागरिक को भाषण देने एवं विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता है और यह उनका मौलिक अधिकार है।
पर जैसे ही ‛स्वतंत्रता' व ‛आज़ादी' का ज़िक्र आता है कुछ लोगो को यह लगने लगता है कि उन्हें बिना किसी रोक-टोक कुछ भी कहने और करने की स्वतंत्रता है जोकि सरासर निरर्थक है। चूँकि अभिव्यक्ति की आज़ादी का अधिकार ‛व्यक्तिगत स्वतंत्रता' के अंतर्गत आता है तो स्वतंत्रता के मायने जानना भी अनिवार्य हो जाता है।
अब यहाँ पर इस तथ्य से वाकिफ़ होना ज़रूरी है कि अगर व्यक्ति को ‛कुछ भी' करने की स्वतंत्रता दे दी जाए तो समाज में अराजकता एवं असंतोष(Chaos,Lawlessness) फैल जाएगा ,जोकि स्वतंत्रता का ‛नकारात्मक स्वरुप' होगा।
सभ्य समाज में रहकर व्यक्ति जो कुछ चाहे नहीं कर सकता,किसी भी व्यक्ति को चोरी करने की आज़ादी नहीं दी जा सकती।स्वतंत्रता कभी भी license नहीं बन सकती। वरना समाज में एक ही कानून होगा ‛‛जिसकी लाठी उसकी भैंस''।
आज़ादी एवं स्वतंत्रता से अभिप्राय - ‛‛सभी प्रतिबंदो का अभाव''(Absence of all fear) बिलकुल नहीं है।
स्वतंत्रता के अर्थ से तात्पर्य -
- सभी तरह की पाबंदियों का आभाव स्वतंत्रता नहीं है!
- निरंकुश,अनैतिक और अन्यायपूर्ण पाबंदियों एवं बंदिशों का अभाव ही स्वतंत्रता है।
- स्वतंत्रता के तहत व्यक्ति को उन सब कार्यों को करने का अधिकार है जो करने योग्य हैं।
- व्यक्ति को वे कार्य करने का अधिकार है जो किसी अन्य व्यक्ति के सम्मान,प्रतिष्ठा और चरित्र को हानि न पहुचाए और उनके मौलिक अधिकारों का हनन न करे।
अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर संविधान और कानून की दुहाई देने वाले ऐसे फ़िल्म निर्माता,निदेशक,नेता टाइप छात्रों को अब समाज को पथभ्रष्ट करने से परहेज़ करना चाहिए क्योंकि सभी ने ‘Anti-National' Medicine नहीं खायी हुई हैं।
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